आसाराम जी साधू नहीं, धर्म के व्यापारी हैं......
साधू
की परिभाषा कबीर के शब्दों मे, " कबिरा
खड़ा बाज़ार मे, लिए
लुकाठी हाथ.... जो घर फूंके आपना , चले
हमारे साथ॥" हजारों करोड़ का धन और स्ंपत्तिया जमा करने वाले आसाराम जी विशुद्ध व्यवसायी हैं जो धर्म का व्यापार करते हैं।
आसारामजी साधू तो बिलकुल नहीं है। साधू धन दौलत का संग्रह नहीं करते, साधु विलासिता मे नहीं जीते , साधु रातों को स्त्रियॉं से नहीं मिलते , साधू अपने पुत्र को अपना वारिस नहीं बनाते , साधू दूसरों की संपत्तियाँ नहीं
हड़पते, साधुओं
वाला कोई आचरण आसाराम जी का नहीं है। वे सिर्फ प्रवचनकर्ता हैं जो धर्म का प्रचार करते है। वे धर्म
की दुकान चलाते हैं। वे पुरोहित हैं जो धार्मिक अनुष्ठान करवाते हैं और उसके बदले मे
दान लेते है। वे धर्म को वैसे ही बेचते हैं, जैसे धार्मिक पुस्तके
बिकती हैं।
अब आसारामजी बलात्कार और अन्य गैर कानूनी गतिविधियों मे सलग्न हैं की नहीं? ये पुलिस और जांच अजेंसियाँ तय करेंगी, विभिन्न अदलते तय करेंगी, जिनमे उनके खिलाफ विभिन्न मुकदमे दर्ज हैं। पर उनका आचरण तो बिलकुल भी साधू
को शोभा देने वाला नहीं है। उनमे क्षमा, दया, वाणी का संयम इत्यादि का नितांत अभाव है।
रामचरित मानस मे तुलसीदासजी ने कहा है, ‘धरम न दूसर सत्य समाना....’ और यह तो तय है की आसारामजी
एक साधारण गृहस्थ की तरह अपने स्वार्थ के लिए झूठ बोलते पाये गए हैं। मुझे दुःख इस
बात का है की आसारामजी के आचरण से पूरा साधु समाज बदनाम हो रहा है। पूरा सनातन धर्म
बदनाम हो रहा है। मैंने कभी कहा था ......
ढोंगी, लोभी, लालची, हो गया संत समाज
इनकी गतिविधि देखकर ‘नमन’ हुआ नाराज़। ‘नमन’
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