निजी क्षेत्र मे आरक्षण की राजनीति, भारतीय अर्थव्यवस्था के खिलाफ एक साजिश ....
जातिगत आरक्षण देश के सरकारी तंत्र मे लगा हुआ वो घुन है जो देश के पूरे सरकारी तंत्र को अंदर-अंदर कमजोर कर रहा है। यहाँ मैं ये स्पष्ट कर देना चाहता हूँ की मैं देश के कमजोर तबकों हरिजनो, आदिवासियों, अन्य पिछड़ी जतियों और समूह के लोगो के सक्षमीकरण के खिलाफ नहीं हूँ। परंतु उस व्यवस्था के एकदम खिलाफ हूँ जो अक्षम और नाकाबिल लोगों को ऐसी जगह पर स्थापित कर देते हैं, वे जिसके योग्य नहीं है। इसका असर पूरी व्यवस्था पर पड़ता है। यह वैसे ही है जैसे एक 120 किलोमीटर तेज दौड़ने वाली एक्स्प्रेस ट्रेन मे 50किलोमीटर की स्पीड से चलने वाली पैसेंजर ट्रेन के कुछ डिब्बे लगा दिये जाएँ। पूरी एक्स्प्रेस ट्रेन की रफ्तार 120 किलोमीटर से घट कर 50 किलोमीटर रह जाएगी।
यह स्पीड ब्रेकर आज पूरे देश की प्रगति को जगह- जगह रोक रहा है। अपने राजनैतिक स्वार्थ के लिए सभी राजनैतिक पार्टियां जातिगत आरक्षण को बढ़ावा दे रहीं है। ऐसा नहीं है की अनुसूचित जातियों, जन जातियों , पिछड़े वर्गों के लोगों मे प्रतिभा की कमी है। इन वर्गों ने देश को अनेक महान विभूतियाँ दी हैं और राष्ट्र निर्माण मे उनका योगदान कोई देशवासी भुला नहीं सकता। परंतु आरक्षण के नाम पर अक्षम लोगो की नियुक्ति और फिर उनकी पदोन्नति देश के प्रगति की रफ्तार को लगा वो वायरस है जो पूरे सरकारी तंत्र को प्रभावित कर रहा है।
आज जब सर्व शिक्षा अभियान, विद्यालयों मे दोपहर के भोजन की व्यवस्था , FOOD SECURITY BILL, NATIONAL HEALTH MISSSION, MNRAREGA, आदिवासियों के अधिकार जैसी योजनाओं से दुर्बल घटकों का सक्षमीकरण हुआ है, मेरी राय मे जातिगत आरक्षण को हटा कर दुर्बल और पिछड़ी जातियों के आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के साथ-साथ अन्य आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को भी नौकरियों मे आरक्षण दिया जाए। पर जिन नौकरियों के वे योग्य हैं वहाँ ही उनकी नियुक्ति हो। साथ ही पदोन्नतियां सिर्फ और सिर्फ योग्यता के आधार पर ही दी जाएँ।
अब राजनैतिक पार्टियां निजी क्षेत्रों मे भी आरक्षण की मांग कर रही हैं। इससे निजी क्षेत्र की कंपनियों की गुणवत्ता और उत्पादकता दोनों बुरी तरह प्रभावित होंगी। निजी क्षेत्र की कंपनियाँ की साख और लाभ कमाने की क्षमता पर इसके दूरगामी परिणाम होंगी। बहुराष्ट्रीय कंपनियों किसी भी ऐसी व्यवस्था का विरोध करेंगी और उनके द्वारा भारत मे किए जा रहे निवेश पर इसका बहुत बुरा असर पड़ेगा। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था चरमरा जाएगी। मैं निजी कंपनियों मे आरक्षण के प्रस्ताव को भारतीय अर्थव्यवस्था के खिलाफ एक साजिश के रूप मे देखता हूँ।
‘नमन’
e-mail- namanom1960@gmail.com
blog- namanbatkahi.blogspot.com
जातिगत आरक्षण देश के सरकारी तंत्र मे लगा हुआ वो घुन है जो देश के पूरे सरकारी तंत्र को अंदर-अंदर कमजोर कर रहा है। यहाँ मैं ये स्पष्ट कर देना चाहता हूँ की मैं देश के कमजोर तबकों हरिजनो, आदिवासियों, अन्य पिछड़ी जतियों और समूह के लोगो के सक्षमीकरण के खिलाफ नहीं हूँ। परंतु उस व्यवस्था के एकदम खिलाफ हूँ जो अक्षम और नाकाबिल लोगों को ऐसी जगह पर स्थापित कर देते हैं, वे जिसके योग्य नहीं है। इसका असर पूरी व्यवस्था पर पड़ता है। यह वैसे ही है जैसे एक 120 किलोमीटर तेज दौड़ने वाली एक्स्प्रेस ट्रेन मे 50किलोमीटर की स्पीड से चलने वाली पैसेंजर ट्रेन के कुछ डिब्बे लगा दिये जाएँ। पूरी एक्स्प्रेस ट्रेन की रफ्तार 120 किलोमीटर से घट कर 50 किलोमीटर रह जाएगी।
यह स्पीड ब्रेकर आज पूरे देश की प्रगति को जगह- जगह रोक रहा है। अपने राजनैतिक स्वार्थ के लिए सभी राजनैतिक पार्टियां जातिगत आरक्षण को बढ़ावा दे रहीं है। ऐसा नहीं है की अनुसूचित जातियों, जन जातियों , पिछड़े वर्गों के लोगों मे प्रतिभा की कमी है। इन वर्गों ने देश को अनेक महान विभूतियाँ दी हैं और राष्ट्र निर्माण मे उनका योगदान कोई देशवासी भुला नहीं सकता। परंतु आरक्षण के नाम पर अक्षम लोगो की नियुक्ति और फिर उनकी पदोन्नति देश के प्रगति की रफ्तार को लगा वो वायरस है जो पूरे सरकारी तंत्र को प्रभावित कर रहा है।
आज जब सर्व शिक्षा अभियान, विद्यालयों मे दोपहर के भोजन की व्यवस्था , FOOD SECURITY BILL, NATIONAL HEALTH MISSSION, MNRAREGA, आदिवासियों के अधिकार जैसी योजनाओं से दुर्बल घटकों का सक्षमीकरण हुआ है, मेरी राय मे जातिगत आरक्षण को हटा कर दुर्बल और पिछड़ी जातियों के आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के साथ-साथ अन्य आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को भी नौकरियों मे आरक्षण दिया जाए। पर जिन नौकरियों के वे योग्य हैं वहाँ ही उनकी नियुक्ति हो। साथ ही पदोन्नतियां सिर्फ और सिर्फ योग्यता के आधार पर ही दी जाएँ।
अब राजनैतिक पार्टियां निजी क्षेत्रों मे भी आरक्षण की मांग कर रही हैं। इससे निजी क्षेत्र की कंपनियों की गुणवत्ता और उत्पादकता दोनों बुरी तरह प्रभावित होंगी। निजी क्षेत्र की कंपनियाँ की साख और लाभ कमाने की क्षमता पर इसके दूरगामी परिणाम होंगी। बहुराष्ट्रीय कंपनियों किसी भी ऐसी व्यवस्था का विरोध करेंगी और उनके द्वारा भारत मे किए जा रहे निवेश पर इसका बहुत बुरा असर पड़ेगा। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था चरमरा जाएगी। मैं निजी कंपनियों मे आरक्षण के प्रस्ताव को भारतीय अर्थव्यवस्था के खिलाफ एक साजिश के रूप मे देखता हूँ।
‘नमन’
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बिलकुल सही लिखा आपने , आरक्षण ने हमारे देश को आगे ले जाने के बजाय सदा गर्त में ही धकेला है ,आरक्षण के जन्म् कर्ता ने भी मात्र इसे दस साल के लिए लागू किया था लेकिन हमारे देश के घटिया राजनीतिज्ञो ने इसे आज यहाँ तक खींच दिया है जिसे चाहकर भी इतनी जल्द खत्म कर पाना नामुमकिन है
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