Saturday, 20 July 2013

--- 1857 की क्रांति के महानायक शहीद मंगल पांडे ---


भारत का पहला स्वतन्त्रता संग्राम, जिसे कुछ इतिहासकार किसान विद्रोह का भी नाम देते है, दर असल अंग्रेजों के खिलाफ उत्तर भारतीय सवर्णों का विद्रोह था।

एनफील्ड राइफल के कारतूसों मे गाय और सूअर... की चर्बी के उपयोग और उन कारतूसों को उपयोग के लिए मुंह से खोलने की बात ने बंगाल प्रेसीडेंसी के ब्राह्मण, राजपूत और मुसलमान सैनिकों को विद्रोह करने पर मजबूर कर दिया। 1857 मे पूरे हिंदुस्तान मे बंगाल प्रेसीडेंसी, बॉम्बे प्रेसीडेंसी और मद्रास प्रेसीडेंसी को मिला कर कुल ब्रिटिश फौज की कुल संख्या लगभग 2लाख 38हजार थी। इनमे 38 हजार यूरोपियन सिपाही थे। इनमे से सिर्फ बंगाल प्रेसीडेंसी के मध्य भारत के विभिन्न छावनियों मे रहने वाले सिपाहियों ने विद्रोह किया। बंगाल प्रेसीडेंसी के कुल 1लाख 51हजार सिपाहियों मे 23हजार यूरोपियन थे। इनमे से भी 13हजार यूरोपियन सिपाही पंजाब से अफगानिस्तान के पास तक तैनात थे, जो बंगाल प्रेसीडेंसी के क्षेत्र मे आता था। बंगाल प्रेसीडेंसी के अंतर्गत वह क्षेत्र आता था जिसे हम गंगा – यमुना का दोआबा कहते हैं, या हिंदुस्तान की सबसे उपजाऊ ज़मीन कहते हैं जो पंजाब से बंगाल तक फैली है।

1857 के विद्रोह मे मद्रास और मुंबई प्रेसीडेंसी के किसी हिन्दुस्तानी सिपाही ने भाग नहीं लिया । साथ ही बंगाल प्रेसीडेंसी के सिख सैनिकों ने इस डर से की अगर ये विद्रोह सफल हुआ तो हिंदुस्तान मे फिर से मुगल सल्तनत आ जाएगी अंग्रेजों का साथ दिया। अंग्रेजों ने उन्हे डराया की विद्रोहियों ने बहादुरशाह जफर को दिल्ली की गद्दी पर बैठा दिया है और अगर पूरे हिंदुस्तान पर उसका राज्य हो गया तो सिखों के साथ वह औरंगजेब जैसा व्यवहार करेगा।

इस क्रांति के महानायक शहीद मंगल पांडे के साथ इतिहासकारों ने न्याय नहीं किया है, न तो 1857 की क्रांति के अन्य नायकों के साथ। इस क्रांति मे बंगाल प्रेसीडेंसी के 40 हजार सैनिकों ने जो अवध के सवर्ण(ब्राह्मण और राजपूत) थे, बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया और शहादत पायी । इन सैनिकों मे से भी अधिकांश ब्राह्मण थे। ये सिपाही लखनऊं, फैजाबाद, कानपुर, इलाहाबाद और बनारस के बीच के क्षेत्र से आते थे जिसे अवध कहा जाता था। इसी वजह से 1857 के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम मे अवध का किसान भी अपने ब्राह्मण और राजपूत सिपाही भाईयों के साथ इस लड़ाई मे कूद पड़ा था।

बाद मे अंग्रेज़ सिपाहियों ने पूरी बर्बरता के साथ इन सिपाहियों को गाँव से ढूंढ ढूंढ कर पेड़ों पर लटका कर फांसी दी। अंग्रेज़ इन पर गोली खर्च नहीं करना चाहते थे सो उन्होने इन सिपाहियों , किसानो और उनके घर के अन्य जवानों को उनके ही गाँव के पेड़ पर सार्वजनिक फांसी दी। ये लाशें हफ्तों पेड़ों पर लटकी रही। पूरे अवध मे रास्तों और गाँव मे पेड़ नहीं बचे थे जिन पर इन शहीदों की लाशें न लटकी हों। पहले स्वतन्त्रता आंदोलन की असफलता की सबसे जादा कीमत अवध ने चुकाई।

ये क्रांति मध्य भारत तक ही सीमित रही। पूरा पश्चिमी, दक्षिणी, पूर्वी और उत्तर भारत इस क्रांति से अलग रहा।

लुटा दिया सर्वस्व देश पर, तुमने ऐ बलिदानी

शत-शत बार नमन करता हूँ, तुमको ऐ सेनानी।

महानायक अमर शहीद मंगल पांडे की स्मृतियों को बार- बार नमन।

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