Sunday 30 December 2012

'वेदना'



       'वेदना' , जी हाँ , दिल्ली में बलात्कार से पीड़ित लड़की को मैं यही नाम देना चाहूँगा क्यों की वह हमारे पूरे समाज की वेदना बन गयी है, पीड़ा बन गई है। उसके साथ हुए कुकर्म और फिर उसकी मृत्यु ने सम्पूर्ण भारतीय समाज , विशेषकर हमारे युवको को झिंझोड़ कर जगा दिया है। 

हमारे देश में रोज लड़कियों की छेड़छाड़ और बलात्कार की घटनाएँ होती रही हैं, पर न तो कभी आम जनता और न तो मिडिया ने कभी इतनी गंभीरता और आक्रामकता से उसका विरोध किया था। मैं स्वागत करता हूँ हमारे इन  युवाओं और पूरे देश के उन लोगों का जिन्होंने इस बहुत ही संवेदनशील विषय को उठाया है। बिना उनके समर्थन और आन्दोलन के शासन में बैठे गूंगे -बहरे और अंधों के कानो पर जूं भी न रेंगती।

मैं स्वागत करूँगा हमारे बुद्धिजीवियों का भी जिन्होंने देर से सही इस विषय पर पिछले दिनों सकारात्मक चर्चा की है। पर क्या सिर्फ चर्चाओं और आन्दोलनो से हम इस सामाजिक बुराई से लड़ सकेंगे ?  मेरा मानना है की यह जितना कानून और व्यवस्था का प्रश्न है, उतना ही बड़ा सामाजिक प्रश्न भी है।

क्या सिर्फ ऐसे अपराधियों को पकड़ लेने से, विशेष अदालतों द्वारा मुकदमो के जल्द निपटारे से, बलात्कार के मुजरिम को फांसी की सजा दे देने से, बसों और कारों के काले शीशे और परदे हटा देने से ... ऐसी घटनाएँ बंद हो जाएँगी, हमारी माँ -बहने सुरक्षित हो जाएँगी, छेड़-छाड़ और बलात्कार होने बंद हो जायेंगे ?

मुझे नहीं लगता की इन कदमों से हम इन घटनाओं को रोक पाएंगे। इसके लिए हमें पुलिस महकमे में सुधार , प्रशासनिक सुधार, न्याय व्यवस्था में सुधार और इन सबसे अधिक हमारी राजनैतिक व्यवस्था में सुधार की जरुरत है। साथ ही जरुरत है एक ऐसे समाज की जो ... 
1- अपराधियों को सम्मान देना बंद करे। 
2- आपराधिक छबि वाले नेताओं को न केवल वोट देना बंद करे बल्कि उनका सामाजिक बहिष्कार करे।
3-  भ्रष्ट अधिकारिओं को महिमा मंडित करने के बजाय उनका विरोध हर स्तर पर हो। 
4. छेड़ -छाड़, महिला उत्पीडन और बलात्कार के अपराधी और उनके परिवारजनो का सामाजिक बहिष्कार हो, उनके यहाँ शादी व्याह बंद किया जाये, उनको पूजा - यज्ञ और सहभोज में आमंत्रित करना बंद किया जाये और उनसे सारे सामजिक संबंध तोड़ लिए जाएँ। 
5- देश के हर थाने में कम से कम 25% महिला अधिकारिओ की नियुक्ति हो।
6- हम अपने समाज की पुरुष प्रधान मानसिकता को बदलें, स्त्री को सिर्फ एक भोग की वस्तु समझना बंद    करे और 'यत्र नारीयस्तु पूज्यन्ते -रमन्ते तत्र देवताः ' के सूत्र को अपने परिवार और समाज में स्थापित करें।

      एक बार फिर 'वेदना' को श्रद्धांजली और  उसके संघर्ष के लिए उसे प्रणाम!  
                                                                                                         'नमन'

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