मेरी चाहत
बिजलियाँ हम पे गिराने का चलन है उनका
दिल है सोने का तो चांदी का बदन है उनका।
महफ़िल में उसने आज चुपके से अंगडाई ली
क़त्ल करके मुकर जाने का ये फन है उनका।
देश की खातिर जिन्होंने न हिलाई अंगुली
हक़ जताते हैं की ए सारा वतन है उनका।
घर से निकला है चाँद देखो सितारों के संग
लोग कहते है की ये धरती- गगन है उनका।
मेरी चाहत पे भरोसा नहीं उनको शायद
सिर से पांव तक जबकी ये 'नमन' है उनका।
'नमन'
वाह ओम जी, सुन्दर रचना..
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