मै यह मानता हूँ क़ी हमें प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह ज़ी क़ी नीयत पर शंका नहीं करनी चाहिए| बी.जे.पी. जैसी पार्टियों और उनके नेताओं में दूर- दृष्टी का अभाव पहले भी था और आज भी है| मैं आपको कुछ घटनाएं याद कराना चाहूँगा...
१.. जब १९८५ - ८६ में स्व. राजीव गाँधी ने देश में कंप्यूटर लाने क़ी बात क़ी तो बी.जे.पी. से लेकर कम्युनिस्ट तक उसका विरोध कर रहे थे | जनता को दिग्भ्रमित किया जा रहा था क़ी कंप्यूटर आ जाने से नौकरियाँ ख़त्म हो जाएँगी| पर हुआ उल्टा , इस क्षेत्र में ना केवल नयी नौकरियाँ ईजाद हुयी बल्कि आज हिन्दुस्तान को होने वाली विदेशी आय का एक बड़ा हिस्सा भी इसी क्षेत्र से आता है|
२.. जब स्व. राजीव गाँधी और उनके वैज्ञानिक सलाहकार सम पित्रोदा ने १९८५-८६ में अगले १५ वर्षों में हर गांव तक टेलेफोन पहुँचाने क़ी बात क़ी तो यही विरोधी पार्टियां उनका मज़ाक उड़ाती थी और आज हर गांव तो छोडिये हर व्यक्ति तक टेलीफोन पहुँच गया है|
३.. जब टेलीकाम क्षेत्र में विदेशी पूंजी निवेश क़ी बात शुरू हुयी तो यही लोग कहते थे क़ी ये विदेशी निवेशक देश को लूट लेंगे... आज हम सन १९७० - ८० क़ी टेलीफोन दरों से तुलना करे तो हम प्रति काल १२००० गुना काम, ज़ी हाँ उस समय का १/ १२००० हिस्सा ही प्रति फोन-प्रति मिनट खर्च करते हैं |
और अब रिटेल में विदेशी पूँजी निवेश का विरोध...... और कुछ तथ्य...
१.. अगर रिटेल में विदेशी पूंजी न भी लायी जाये तो भी इस क्षेत्र में मोर(बिरला), रिलायंस , सहारा जैसे भारतीय निवेशक पहले ही आ चुके हैं और इनसे अभी तक न तो किसानो को नुक्सान हुवा है , ना तो खुदरा व्यापारियों क़ी ही दूकान बंद हुयी है|
२... १९७० -८० के दशक में जब किसान ३से ४ रुपये किलो गेहूं बेचता था तब हम शहरों में ६से ७ रुपये किलो गेहूं खरीदते थे| जब किसान का विक्री मूल्य ५ से ५.५०रु. पहंचा तब शहरी उपभोक्ता को यह गेहूं लगभग १०रु, किलो मिलाने लगा | आज जब केंद्र सरकार ने गेहूं का खरीदी मूल्य लगभग ९.५०रु. कर दिया है , शहर में गेहूं १८ से २२ रु. किलो बिक रहा है|यही हालत सभी अनाजों व सब्जियों क़ी है|
यह दिखाता है क़ी हमारा असली शोषण हमारे ही थोक और खुदरा व्यापारी कर रहे हैं | एक तरफ मै किसान के नाते ९रु. किलो गेहूं बेचता हूँ दूसरी तरफ शहर में मै उपभोक्ता के नाते १९ -२० रु. किलो गेहूं खरीदता हूँ|
३... किसान से हम तक अनाज और सब्जियां पहुंचने में लाभ कमाने वालों क़ी सूची....
अ. किसान को मिलने वाली कीमत + वजन+गाडी में लादने का खर्च +गाडी भाडा + उतरने का खर्च == खुदरा खरीददार (स्थानीय बनिया) का खरीद खर्च
ब . खुदरा व्यापारी का खरीद खर्च + दलाली + वजन+गाडी में लादने का खर्च +गाडी भाडा + उतरने का खर्च+भंडारण+ खुदरा व्यापारी का लाभ == थोक व्यापारी का खरीद खर्च
क.. थोक व्यापारी का खरीद खर्च + उसका लाभ+ बिक्री करने वाले बाज़ार का कृषि उत्पन्न बाज़ार समिति टैक्स+ दलाली+ गाडी भाड़ा + भराई- खाली करायी (मजदूरी) + खरीद दार के तरफ क़ी दलाली+ खरीददार के बाज़ार का कृषि उत्पन्न बाज़ार समिति टैक्स+ भण्डारण == शहर के थोक व्यापारी का खरीउपभोक्ता द मूल्य
ड.. शहर के थोक व्यापारी का खरीउपभोक्ता द मूल्य + उसका लाभ + खुदरा व्यापारी का ढुलायी खर्च( गाडी भाड़ा+ भराई -खाली करायी)+ खुदरा व्यापारी का लाभ = उपभोक्ता का खरीदी मूल्य
इसमें किसान और उपभोक्ता दोनों का शोषण हो रहा है | जितने बड़े निवेशक इस क्षेत्र में आयेंगे प्रतिस्पर्धा का उतना लाभ किसानो और उपभोक्ता को मिलेगा|
कोयला घोटाला....... और कुछ तथ्य ...
१.. सी.ए.ज़ी. का अनुमान क़ी लगभग १.८० लाख करोड़ का नुक्सान इन खानों के आबंटन से सरकारी खजाने को हुआ है.....
अ .. जब केंद्र और राज्यों के संयुक्त फैसले( राज्य सरकारों क़ी मांग पर जिनमे बी.जे.पी. व अन्य दलों क़ी भी सरकारे हैं) से बिना निविदा मंगाए कोयला खदानों का आबंटन हुआ तब ना तो राज्य सरकार ना तो केंद्र सरकार को यह अनुमान था क़ी इससे इतना घाटा हो सकता है, वरना बी.जे.पी. व अन्य पार्टियाँ उसी समय उसका विरोध करती|
ब.. आबंटित ५९ खदानों में से ५८ से आज तक १ किलो कोयला नहीं निकाला गया है, जिसका अर्थ है कोई वास्तविक घाटा नहीं हुआ है|
क.. बी.जे.पी. क़ी मांग क़ी सब आबंटन तुरंत रद्द कर दिया जाएँ , उन कंपनियों जिनको आबंटन हुआ है को लाभ पहुंचाने का खड्यंत्र है |
ड.. अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल में तत्कालीन पेट्रोलियम मंत्री राम नाइक ने गलत और भ्रष्ट तरीके से लगभग २०० पेट्रोल पम्प आबंटित किये थे| जब उसकी जांच क़ी मांग हुयी तो अटल बिहारी बाजपेयी ने बिना जांच कराये सीधे सभी आबंटन रद्द कर दिए| पेट्रोल पम्पो के मालिक उच्चतम न्यायालय से उसके खिलाफ स्थगन आदेश ले आये और आज तक वे सभी गलत ढंग से आबंटित पेट्रोलपंप पेट्रोल बेच रहे हैं| उच्चतम न्यायलय ने सिर्फ इसी लिए स्थगन आदेश दिए थे क़ी सरकार ने बिना जांच के सभी आबंटन रद्द कर दिए थे|
ए ... यही बी.जे. पी. इस बार भी चाहती है क़ी बिना जांच आबंटन रद्द कर दिए जाएँ ताकि सभी कम्पनियाँ जाकर आराम से न्यायलय जाकर स्थगन आदेश ले आयें और बी.जे.पी. केंद्र सरकार पर दोषारोपण कर सके|
'नमन'
bahut sundar aur satya lekhan,
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