शब्द
ये शब्द उसके लिए हैं
जो बिना शब्दों के भी
मेरी भावनाएं पढ़ लेता है....
जान लेता है
मेरे मौन का भी अर्थ ....
'नमन,
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ये फूल
अक्सर पहाड़ो पर ही क्यों खिलते हैं....?
और ये नदियाँ
पहाड़ों से उतर कर
क्यों सींचती हैं बंजर पठारों को... ?
और फिर
बिन बुलाये ही
समा ज़ाती हैं
समंदर क़ी आगोश में ... ...
ये मन क्यों ढूँढता है शांति
ऊँचे पहाड़ों पर
जहाँ सिर्फ
पत्थर होते हैं..........
'नमन'
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कुछ ख्वाब
कुछ सच के सहारे
बुन लेता हूँ उनसे अपना रिश्ता
जो कभी हमारे नहीं हुए..!
'नमन'
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मुझे पता था
उनका भेजा हुआ
स्नेह सन्देश
कबूतर किसी और को दे आया..!
'नमन'
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सुनी आपने .....
भ्रष्ट राजनैतिक दलों के भीषण दल-दल में
धंसते जा रहे देश क़ी आर्द्र पुकार..
बचाओ-बचाओ ..! 'नमन'
आज कल तेरे ख़त
हर रोज मुझे मिलते हैं...
पूछते हैं
सैकड़ो प्रश्न..........?
जिनके जवाब
नहीं हैं मेरे पास
लगा हूँ
सवालों के जवाब ढूढने में ..
जवाब मिलते ही
पहली फुर्सत में
ख़त लिखूंगा तुम्हे ...
जरूर लिखूंगा ..
क्यों क़ी ..
तुम्हारे सवालों के
जवाब ढूँढने ही तो
चला आया हूँ
तुमसे इतनी दूर......
'नमन'
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कैसे बताएं..
किसे बताएं..
हम जबसे उसके हुए
कहीं के न रहे
किसी के न रहे
अपने भी नहीं .... 'नमन'
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