BATKAHI
कहा कहा फिर फिर कहा, लेकिन कहा न जाय| जब भी कहा कुछ अनकहा, पीड़ा बरनि न जाय||
Saturday, 5 May 2012
रातों की नींद दिल का चैन ढूंढ रहा हूँ
इस भीड़ में उसके दो नैन ढूंढ रहा हूँ।
पत्थर के इस शहर में कहीं खो गया हूँ मैं
जंगल में आदमी का सहन ढूंढ रहा हूँ।
'नमन'
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