जब भी मैं उसको प्यार लिखता हूँ
दुवायें बेशुमार लिखता हूँ|
जो मेरी धडकनों पे सजते हैं
गीत वो बार- बार लिखता हूँ||
गीत पर , जान पर , वफ़ा पर भी
उसका ही इख्तियार लिखता हूँ||
जब भी लिखता हूँ मैं ग़ज़ल कोई
उसके सोलह श्रृंगार लिखता हूँ||
उसकी जुल्फों क़ी पेचो ख़म में उलझ
खुद को उसका बीमार लिखता हूँ|
वो मुझे बेवफा भले समझे
मैं उसे अपना प्यार लिखता हूँ||
'नमन'
दुवायें बेशुमार लिखता हूँ|
जो मेरी धडकनों पे सजते हैं
गीत वो बार- बार लिखता हूँ||
गीत पर , जान पर , वफ़ा पर भी
उसका ही इख्तियार लिखता हूँ||
जब भी लिखता हूँ मैं ग़ज़ल कोई
उसके सोलह श्रृंगार लिखता हूँ||
उसकी जुल्फों क़ी पेचो ख़म में उलझ
खुद को उसका बीमार लिखता हूँ|
वो मुझे बेवफा भले समझे
मैं उसे अपना प्यार लिखता हूँ||
'नमन'
जब भी लिखता हूँ मैं ग़ज़ल कोई
ReplyDeleteउसके सोलह श्रृंगार लिखता हूँ||
BAHUT SUNDAR RACHANA