Sunday, 17 April 2011

MUMBAI AUR HINDI BHASHI

मित्रों,
  पिछले दिनों एक बार फिर एक राजनैतिक दल ने आने वाले ठाणे और मुंबई महानगरपालिका चुनावों में सफल होने के लिए प्रांतवाद , भाषावाद और घृणा  की राजनीति  शुरू की है| पूरे मुंबई और ठाणे जिले में पानी पूरी / भेलपुरी का धंदा  करनेवालों को जान बूझ कर प्रताड़ित किया जा रहा है, उनकी हाथ गाड़ियाँ तोड़ी जा रही हैं|   यह सब सिर्फ आने वाले महानगरपालिका चुनावों में मराठी मतों के ध्रुवी करण के लिए
किया जा रहा है|
आज तक इस राजनैतिक दल के नेता अपने भाषणों में मुंबई की सभी बुराइयों की
जड़ अन्य प्रान्तों से आनेवाले लोगों को बताते आ रहे थे|  अगर मुंबई में संसाधनों की कमी है, झोपड़ियां बढ़ रही हैं, पानी की कमी है, सडकों पर खड्डे हैं, ट्रेनों में
भीड़ है इत्यादि इत्यादि तो सबके दोषी हिंदी भाषी हैं, क्योंकि वे बहुत बड़ी संख्या में 
रोज मुंबई आ रहे हैं|
अब नयी जनगड़ना से इनके भाषणों की पोल खुल गयी है| सन २००१ से २०११ के बीच
मुंबई की आबादी १ करोड़ १९ लाख से बढ़ कर लगभग १ करोड़ २४ लाख हो गयी है|
यानी इन  दस वर्षों में मुंबई की आबादी में सिर्फ ५ लाख का इजाफा हुआ है| यह वृद्धि
ऋणात्मक वृद्धि दर बताती है, क्योंकि सन २००१ की १ करोड़ १९ लाख जनसँख्या
में लगभग ३० लाख परिवार होते हैं और अगर इनमे से आधे यानी लगभग १५ लाख
परिवारों में अगर १ बच्चे ने भी इन दस वर्षों में जन्म लिया है तो मुंबई की आबादी
लगभग १५ लाख बढ़नी चाहिए थी| जब की बढ़ी है सिर्फ ५ लाख, यानी कम से कम
१० लाख लोग पिछले १० वर्षों में मुंबई छोड़ कर बाहर चले गए हैं|

अब तो मुंबई पर शासन करने वालों ने अपनी गलती दूसरे के सर पर मढ़ना बंद
कर देना चाहिए|  "नाच न आवे आँगन टेढ़ा" की कहावत इन पर खूब चरितार्थ होती
है| हिंदी भाषी एवं अन्य भाषा भाषियों और अन्य प्रान्तों से आये लोगो और
संत और विचारकों की धरती महाराष्ट्र की  मराठी भाषी जनता में द्वेष और घृणा 
के बीज बोने वाले इन राजनैतिक दलों में ठोस राजनैतिक विचारधारा का अभाव है|
ये लोग विकास और सुधारों के नाम पर मत न मांग कर समाज को विघटित करने का काम
कर रहे हैं| 

यहाँ मैं आप लोगो को ५१ वर्ष पीछे ले जाना चाहूँगा जब १ मई १९६० को महाराष्ट्र
बना| संयुक्त महाराष्ट्र आन्दोलन में अपने महाराष्ट्रियन बांधवों के साथ हिंदी भाषी
एवं अन्य भाषा भाषियों ने अपना खून बहाया|  भाषा और प्रान्त के नाम पर
राजनैतिक रोटियां सेंकने वाले मेरे इन राजनैतिक मित्रों को शायद यह भूल गया
है की जहाँ मुंबई महाराष्ट्र की राजधानी हो या गुजरात में उसका विलय हो इस
नाम पर दंगे हो रहे थे लोग जान दे रहे थे और जान ले रहे थे , वहीँ उसी समय
मध्य भारत की राजधानी नागपुर और उससे लगे हुए कई हिंदी भाषी  जिलों को
 महाराष्ट्र में शामिल करने का विरोध  हिंदी भाषियों  ने नहीं किया| उन्होंने सहर्ष 
महाराष्ट्र में अपने जिलों यहाँ तक की अपनी राजधानी तक के विलय को मान्यता 
दे दी|  वह हिंदी भाषी जो अपने राज्य की राजधानी तक महाराष्ट्र को देने का विरोध 
नहीं करता, मुंबई में बाहरी कह दिया  जाता है| अपनी अकर्मण्यता को जाती , धर्म
और भाषा के नाम पर बांटने वाले इन राजनीतिज्ञों को को बता दूँ कि ये वही हिंदी भाषी
हैं जिनके नाम के आगे सिंह , पांडे, तिवारी, यादव, मिश्र, वर्मा, शर्मा, ठाकुर 
 या ऐसे ही कई उपनाम देख कर उन्हें बड़ी आसानी से परप्रांतीय कह दिया जाता है|
       सभी राजनीतक दलों के आकाओं से मेरी नम्र विनती मेरी इस रचना के
माध्यम से की, वे  धर्म, जाति, भाषा, प्रान्त के आधार पर हमें न बाँटें....

भले बाँट दो तुम हमें सरहदों में 
भले बाँट दो तुम हमें मजहबों में  |
भले खींच दो तुम लकीरें जमी पर 
नहीं बाँट पाओगे दिल को हदों में|| 

नहीं बाँट पाओगे तुम इन गुलों को
ये यंहा भी खिलेंगे वहां भी खिलेंगे|
नहीं   बाँट पाओगे तुम चाँद     तारे
ये यहाँ भी उगेंगे वहां भी उगेंगे||

कभी देश बांटे कभी प्रान्त बांटे
कभी बांटी नदियाँ कभी खेत बांटे|
खुदा ने बनाया था सिर्फ एक  इंसान
मगर मजहबों ने है इंसान बांटे|

जहाँ तक चलेंगी ये ठंडी हवाएं
जहाँ तक घिरेंगी ये काली घटायें
जहाँ तक मोहब्बत का पैगाम जाये
जहाँ तक पहुंचती हैं मेरी सदायें||

वहां तक न धरती गगन ये बंटेगा
वहां तक न अपना चमन ये बंटेगा
न तुम बाँट पाओगे मेरी मोहब्बत
न तुम बाँट पाओगे  दिल की दौलत||

भले बाँट दो तुम जमी ये हमारी
नहीं बँट सकेंगी हमारी दुवायें|
मेरी प्रार्थना है न बांटो दिलों को
न बोवो दिलों में ये नफरत के कांटे||
                                                                    'नमन'










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