कोमल हृदय की
उर्वरा भूमि पर
उर्वरा भूमि पर
अंकुरित होते हैं
संभावनाओं के वीज
कभी भावनाओं की नमी
तो कभी आंसुओं से सिंचित
गीत की लताएँ
निकलती हैं हृदय को चीर कर
कभी उग आती है
ग़ज़ल की महकती क्यारी
जिसका हर फूल
होता है लिए अपनी
अलग रंग-अलग गंध
कभी उग आता है
खंड-काव्य का अमोला
कभी महा-काव्य का वट वृक्ष
पर इन सबके लिए
हृदय को फटना पड़ता है
बार बार , अनेकों बार|
'नमन'
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