Saturday, 8 January 2011

NAN VARSH AUR HUM

 कवि  या साहित्यकार समाज का आईना होते हैं | हम जो अनुभव करते
है, देखते हैं, महसूस करते  हैं वही कागज पर उतार देते हैं.....
 तोड़ दो चाहे उसे कर दो तुम टुकडे टुकड़े
 ये आईना है कभी  झूठ  नहीं बोलेगा||
कभी इसी सच के लिए हमें सम्मानित किया जाता है तो कभी
प्रताड़ित .......
आईना बन के जी है जिंदगी जिसने
वही बताएगा ता उम्र क्यों पत्थर झेले|| 
 आज अधिक कुछ न  कह कर अपनी नयी ग़ज़ल आप तक प्रेषित
कर रहा हूँ.......
    दिल मेरा बेक़रार है अब भी
    कमबख्त बेइख्तियार है अब भी||

    तुझसे मिले इक उम्र हो गयी लेकिन
    तू ही दिल का करार है अब भी || 

    तेरी जुल्फों क़ी कसम है मुझको
    दिल जिन मे गिरफ्तार है अब भी||

    कभी नज़रों के तीर खाए थे
    दर्द वो बरक़रार है अब भी  ||

    तेरी रुसवाई से पागल ये 'नमन'
    तेरा ही तलबगार है अब भी ||
                                                     'नमन'

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