कवि या साहित्यकार समाज का आईना होते हैं | हम जो अनुभव करते
है, देखते हैं, महसूस करते हैं वही कागज पर उतार देते हैं.....
तोड़ दो चाहे उसे कर दो तुम टुकडे टुकड़े
ये आईना है कभी झूठ नहीं बोलेगा||
कभी इसी सच के लिए हमें सम्मानित किया जाता है तो कभी
प्रताड़ित .......
आईना बन के जी है जिंदगी जिसने
वही बताएगा ता उम्र क्यों पत्थर झेले||
आज अधिक कुछ न कह कर अपनी नयी ग़ज़ल आप तक प्रेषित
कर रहा हूँ.......
दिल मेरा बेक़रार है अब भी
कमबख्त बेइख्तियार है अब भी||
तुझसे मिले इक उम्र हो गयी लेकिन
तू ही दिल का करार है अब भी ||
तेरी जुल्फों क़ी कसम है मुझको
दिल जिन मे गिरफ्तार है अब भी||
कभी नज़रों के तीर खाए थे
दर्द वो बरक़रार है अब भी ||
तेरी रुसवाई से पागल ये 'नमन'
तेरा ही तलबगार है अब भी ||
'नमन'
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