पुनर्मूषको भवः
घृणा नहीं
दया आती है
उनकी कमजोरी पर
इतने कमजोर कि
अपने चेहरे तक पर ...
भरोसा नहीं है उन्हे
इसी लिए जब तब
लगा लेते हैं अलग अलग मुखौटे
जाकर बैठ जाते है
उस भीड में
जहाँ वे खुद को सुरक्षित समझते हैं...
घृणा नहीं
दया आती है
उनकी कमजोरी पर
इतने कमजोर कि
अपने चेहरे तक पर ...
भरोसा नहीं है उन्हे
इसी लिए जब तब
लगा लेते हैं अलग अलग मुखौटे
जाकर बैठ जाते है
उस भीड में
जहाँ वे खुद को सुरक्षित समझते हैं...
रीढ विहीन, चेहरा विहीन, सोच विहीन
खप जाते हैं
किसी भी जगह
शून्य की तरह
फिट कर दिए जाते हैं
आगे पीछे बीच मे कहीं भी
शून्य का अपना ही महात्म्य है
कहीं भी जुङ जाता है
पर गुणात्मक परिवर्तन नहीं लाता
गुणा करने से
पुन: शून्य हो जाता है...
पुन: शून्य हो जाता है....
'नमन'
खप जाते हैं
किसी भी जगह
शून्य की तरह
फिट कर दिए जाते हैं
आगे पीछे बीच मे कहीं भी
शून्य का अपना ही महात्म्य है
कहीं भी जुङ जाता है
पर गुणात्मक परिवर्तन नहीं लाता
गुणा करने से
पुन: शून्य हो जाता है...
पुन: शून्य हो जाता है....
'नमन'
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