Friday, 16 January 2015

पुनर्मूषको भवः

पुनर्मूषको भवः 

घृणा नहीं
दया आती है
उनकी कमजोरी पर
इतने कमजोर कि
अपने चेहरे तक पर ...

भरोसा नहीं है उन्हे
इसी लिए जब तब
लगा लेते हैं अलग अलग मुखौटे
जाकर बैठ जाते है
उस भीड में
जहाँ वे खुद को सुरक्षित समझते हैं...

रीढ विहीन, चेहरा विहीन, सोच विहीन
खप जाते हैं
किसी भी जगह
शून्य की तरह
फिट कर दिए जाते हैं
आगे पीछे बीच मे कहीं भी
शून्य का अपना ही महात्म्य है
कहीं भी जुङ जाता है
पर गुणात्मक परिवर्तन नहीं लाता
गुणा करने से
पुन: शून्य हो जाता है...
पुन: शून्य हो जाता है....
'नमन'

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