Friday 29 August 2014

मुझसा बुरा न कोय|

बुरा जो ढूढन मै चला, बुरा न मिलिया कोय 
जो घर ढूढू आपणा, मुझसा बुरा न कोय|

मुझे ऐसे लोगों पर जो अपने अलावा सबको गलत समझते है, मूर्ख और अग्यानी समझते है दया आती है। दया उनकी अनभिग्यता पर आती है। वे भूल जाते हैं की यह ब्रह्माण्ड अनंत है | इस अनंत ब्रह्मांड में हमारी आकाश गंगा जैसी करोडो आकाश गंगा है और सिर्फ हमारी आकाश गंगा में हमारे सौर मंडल जैसे करोडों सौर मंडल हैं । उन करोड़ों सौर मंडलों में से एक की पृथ्वी पर हमने जन्म लिया है | हम अभी तक अपनी पृथ्वी को पूरी तरह नहीं जान पाए हैं| अपने सौर मंडल के सारे ग्रहों के बारे में अभी हमारी जानकारी नगण्य है| अपने को महान ग्यानी समझाने वाले गूगल द्वारा दीक्षित कुछ टीवी पत्रकार इसी श्रेणी में आते हैं। 
अभी हम अपनी पृथ्वी और सौर मंडल को नहीं समझ पाए तो बाकी ब्रह्मांड को क्या समझेंगे ?

ऐसे ही कुछ सज्जन हिंदू, मुस्लिम, ईसाई या अन्य जिस भी अतिवाद का अंधा समर्थन कर रहे हैं वह किसी भी समाज या राष्ट्र के लिए कितना घातक है इसका उन्हे ग्यान नहीं है।

टीवी के कुछ एंकर ईश्वर बनने की कोशिश मे हैं तो कुछ महानुभाव सारे पत्रकारों को सीधे-सीधे चोर और डाकुओं की श्रेणी में रखना चाहते है।  पत्रकारिता क्षेत्र में अभी भी अच्छे ईमानदार पत्रकारों की कमी नहीं है, पर व्यावसायिकता के नाम पर अखबार और टीवी चैनलों के मालिक जरुर बिक गए हैं |

मै इन सज्जनों की इस बात से सहमत हूँ कि अधिकांश पत्रकार अति भ्रष्ट हैं। परंतु राजनैतिक, सामाजिक, प्रशासनिक भ्रष्टाचार के इस महाकुंभ में क्या सिर्फ पत्रकार ही डुबकी लगा रहे हैं? आप एक व्यवसाय बताएं जिसके सब लोग ईमानदार हैं।
एक बात और है की अभी भी हर व्यवसाय मे यहाँ तक की राजनीति जैसे भ्रष्टतम क्षेत्र मे भी, कुछ ईमानदार लोग बचे हुए हैं । उनकी रक्षा के लिए अभयारण्य बनाने की जरूरत है नहीं तो यह प्रजाति लुप्त हो जाएगी।

मेरे अतिवादी मित्रों से प्रार्थना है कि इन ईमानदार व्यक्तियों का शिकार न करें। सबको एक ही तराजू मे न तोलें। विशेषकर पत्रकारिता, पुलिस, न्यायपालिका और राजनीति में जो थोडे से ईमानदार लोग बचे हैं उनकी रक्षा आवश्यक है।


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